कम उम्रों में बढ़ती पाॅर्नोग्राफी
कम उम्रों में बढ़ती पाॅर्नोग्राफी
“अबे सुन सुन जब वो बोलता है कि क्या साईज मैटर करता है तो कैसे लड़किया हँस के बोलती है नहीं साईज से मतलब नहीं होता बस स्टेमिना होना चाहिए ” यह सब एक फुहड़पन भरे शब्द हैं और आपको सुनकर तो आश्चर्य तब होगा जब आप यह सुनेंगे की कहने वाले और सुनने वाले कौन थे।
जिला जौनपुर की एक चर्चित जगह
शाम के करीब 4 बजे के आस पास कुछ खाने पीने का मन हुआ तो मैं सद्भावना (जिला जौनपुर की एक चर्चित जगह ) के एक वेज रेस्टोरेंट में पहुँचा तो अन्दर घुसते ही मैंने अपना आर्डर किया और एक चेयर पर बैठकर खाना आने का इंतजा़र करने लगा ,फोन डिस्चार्ज होने के करी़ब था तो मैंने आस पास की चिजों को ही टाईम पास बनाना उचित समझा और उन्ही को समझने में गौ़र करने लगा, मेरे सामने के चेयरों पर लगभग 14-15 साल के कुछ बच्चे बैठकर गपशप कर रहे थे.
वैसे दुसरों की गपशप सुनना ठीक तो नहीं पर अकेले होने के कारण वही सुनने में इन्ट्रेस्ट जगाना सही समझा , उनकी बाँते पुरे जो़रो पर थी , उनकी बातों पर थोडा़ ध्यान देने पर मैं भौचका हो गया वे बच्चे जो की गिनती में तीन थे आपस में पाॅर्न/ अश्लिलता से भरी बातें कर रहे थे, वे युट्युब से लेकर तरह तरह के सेक्सुयल और विडियों का जिक्र कर रहे थे जो उनकी उम्र के लिए ठीक नहीं था .
जिला जौनपुर की एक चर्चित जगह
वे पाॅर्न स्टारों के नेम और शरीर के बनावट तक जिक्र कर रहे थे और एक दुसरे को चाव से सुना और सुन रहे थे , उन्हे ज़रा भी इस बात का ख्याल नहीं था कि वे सार्वजनिक स्थल पर बैठकर भाव विभोर हो रहें हैं, उनकी बातें को सुनने में मैं इतना मशगूल हो गया कि अपने एक अजी़ज का कब फोन आया और कट गया मैं ध्यान भी नहीं दे पाया और उधर उनकी बातें युट्युब की अश्लिलता से शुरू हुई थी , और वेब सीरीजों पर पहुँच चुकी थी , बातें खत्म होने वाली थी की तब तक फिल्मी जिंदगीयों के राशलीलाओं पर जा अटकी , तो फिर कभी फुहड़ भोजपुरी गानों पर , फिर इन्ही कतारों में अश्लिश मीम्सों पर ।
इन दरमियान मेरा खाना आ भी चुका था और खत्म भी हो चुका था लेकिन उन सभी की बातें दिमाग में कौध रही थी कि क्या ये जो हो रहा है वह सही है ?
क्या इन तरीके से युट्युबों पर बेबाक तरीकों से डबल मीनींग वाले प्रैंक विडियो, डबल मीनींग वाले फुहड़ गाने , जोक्स , मीम्स, वेब सीरीज , विज्ञापन इत्यादि बिना किसी रोक टोक के सार्वजनिक तरीके से समाज में परोसना सही है ? इसका दुष्प्रभाव आने वाली पीडि़यों को किस तरफ ले जा रहा है क्या ये सोचने लायक नहीं है?
वेटर के आवाग़मन से मेरा ध्यान
इन बातों को सोचते हुए, मैं उठा , हाँथ धोया , पानी पिया और पेमेण्ट करते हुए वहाँ से चल दिया।
मैं तो वहाँ से चल चुका था लेकिन मेरा मन उनकी बातों और उनकी अवस्थाओं को अब भी बारी बारी से टटोल रहा था।।
