जुगाड़ की खबरों की रिपोर्टिंग खुद करते हैं दैनिक भास्कर के संपादक
रूटीन की खबर की बाई लाइन अपने नाम से छाप रहे हैं
वाराणसी। हिंदी पत्रकारिता के लिए विख्यात शहर बनारस में दैनिक भास्कर सदियों के इंतजार के बाद आया। मगर किसकी दुकान दो लोगों ने खोल रखी है एक भास्कर की दुकान के संपादक वरुण उपाध्याय तो दूसरे के प्रभारी सतेन्द्र श्रीवास्तव हैं। सतेन्द्र श्रीवास्तव हालांकि बहुत गंभीर रिपोर्टर है। लेकिन वरूण उपाध्याय पत्रकारिता जगत में नया नाम है।
हिन्दी पत्रकारिता जगत में परम्परा यही रही है कि किसी भी अखबार की पहचान उस में छपनी वाली खबर से ही की जाती है। इसके लिए जिम्मेदारी संपादक रिपोर्टर की तय करता है, मगर कानूनी रूप से जिम्मेदार उस अखबार के संपादक की होती है। लेकिन हिन्दी पत्रकारिता के सबसे बड़े गढ़ बनारस में पत्रकारिता के नव पूत-कुपूतों ने पत्रकारिता को अपना मुंह छिपाने लायक नहीं छोड़ा।
ताजा मामला है दैनिक भास्कर का। मूलत: मध्यप्रदेश का यह अखबार फिलहाल सभी हिन्दी भाषा-भाषी राज्यों में अपनी खासी जड़ें जमा चुका है। लेकिन इन जड़ों को काट-उखाड़ करने में जुटे हैं वह लोग जिनपर खुद ही इस अखबार और पत्रकारिता को विकसित करने का जिम्मा है। नाम है डॉक्टर वरूण कुमार उपाध्याय। आज तो हालत यह है कि डॉ उपाध्याय वाराणसी दैनिक भास्कर में स्थानीय संपादक की कुर्सी विराजमान हैं। उल्टी-पुल्टी खबरें लिखकर अखबार की विश्वसनीयता खत्म कर रहे हैं।
रूटीन की खबर की बाई लाइन अपने नाम से छाप रहे हैं
इस अखबार का यह पन्ना और उसके सबसे नीचे यानी बॉटम-लीड के तौर पर छपे इस बॉक्स-न्यूज को देखने की कोशिश कीजिए। इसमें फोटो भी अपनी छाप दी है इस संपादक ने। किसी नौसिखिया नवोदित अखबार के संपादक की शैली में एक ही खबर में तीन जगहों पर अपना ही नाम छाप लिया, साथ ही साथ अपनी फोटो भी।
खबर में क्या है और उसमें संपादक की विशेष रूचि क्या है, यह अब तक अज्ञात है, किसी रहस्यमयी कहानी की तरह। तुर्रा यह कि वे चाहते हैं कि उनके रिपोर्टर लोग उनकी खबरों की वाह-वाही करें, फेसबुक और वाट्सऐप आदि पर वायरल करें। इस अखबार के रिपोर्टर इस बात से परेशान हैं कि रूटीन की खबरें जब संपादक लिखेगा, तो रिपोर्टर फिर विज्ञप्ति बनाएंगे। उनका बस चले तो पूरे अखबार की हर लाइन में अपनी अपना ही नाम छपवा ले। चर्चाएं हैं कि मूर्खतापूर्ण विषयों पर डॉक्टरी छांटा करते हैं डॉ वरूण कुमार उपाध्याय।