“”लोभ ग्रस्त मानव समाज ..””
हाँ मुझे पीड़ा होती है ..
क्योंकि प्रकृति से मुझे प्यार है
हाँ मुझे पीड़ा होती है ..
जब किसान कि लहलहाती फसलें बर्बाद होतीं हैंं .
हाँ मुझे पीड़ा होती है ..
जब मेरी नजरों के सामने पले बढ़े हरे हरे पेड़ों को काटा जाता है .
हाँ मुझे पीड़ा होती है ….
जब कर्ज में डूबा हुआ किसान आत्महत्या पर मजबूर हो जाता है
हाँ मुझे पीड़ा होती है …
जब इंसान सब कुछ गलत होते देख कर भी चुप रहता है
हाँ मुझे पीड़ा होती है ….
जब एक नारी के चरित्र पर बिना सोचे समझे उंगली उठाता है ये समाज
हाँ मुझे पीड़ा होती है …
जब लोभ में अंधे हो कर अनैतिक कार्य करता है इंसान …
αβhi..J
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