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बुंदेलखंड की परम्परागत दीवाली ने मचा दी पूरे देश में धूम….

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जालौन। बुंदेलखंड (Bundelkhand) का परम्परागत लोक नृत्य दिवारी जिसने न सिर्फ़ उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में बल्कि पूरे देश में अपनी धूम मचा दी है, इसमें जिमनास्टिक (gymnastics) की तरह इनके करतब वाकई में अदभुत हैं। अलग तरह से बज रही ढोलक की थाप खुद ब खुद लोगों को थिरकने के लिए मजबूर कर देती है।

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बुंदेलखंड की यह परम्परा गाँवों और शहरों सभी जगह  उत्साह पूर्वक देखी जा सकती है। अलग वेश भूषा और मजबूत लाठी जब दीवाली (Diwali) लोक नृत्य खेलने वालों के हाथ आती है तो यह कला बुन्देली सभ्यता-परम्परा को मजबूत रूप से प्रकट करती है। इस कला को हर बुन्देली सीखना चाहता है फिर चाहे वह बूढ़ा हो या बच्चा या फिर जवान, क्योकि इसमें वीरता का पुट होता है।

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बुंदेलखंड का दिवारी लोक नृत्य गोवधन पर्वत से भी सम्बन्ध रखता है। द्वापर युग (Dwapar era) में श्री कृष्ण ने जब गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा कर ब्रजवासियों को इन्द्र के प्रकोप से बचाया था तब ब्रजवासियों ने खुश हो कर यह दिवारी नृत्य कर श्री कृष्ण (Shri Krishna) की इन्द्र पर विजय का जश्न मनाया था तथा ब्रज के ग्वालवाले ने इसे दुश्मन को परास्त करने की सबसे अच्छी कला माना था।

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इसी कारण इन्द्र को श्री कृष्ण की लीला को देख कर परास्त होना पड़ा। बुंदेलखंड के हर त्योहार में वीरता और बहादुरी दर्शाने की पुरानी रवायत है, तभी तो रोशनी के पर्व में भी लाठी डंडों से युद्ध कला को दर्शाते हुए दीपोत्सव (Deepotsav) मनाने की यह अनूठी परम्परा सिर्फ़ इसी इलाके की दीपावली में ही देखने को मिलती है।

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