आगरा। अंग्रेजी कवि विलियम वर्ड्सवर्थ (Poet William Wordsworth) की एक कविता का हिंदी अर्थ है – हवा को न तुमने देखा है न मैंने, पर जब लटकती हुई पत्तियाँ हिलती हैं, तो उनके पास से गुज़रती हुई हवा महसूस की जा सकती है। आगरा (Agra) के रहने वाले एक शख़्स ने एक रोज ऐसी ही हवा महसूस की, उसकी ताकत पहचानी और फिर बना डाला हवा से चलने वाला इंजन (air engine)।
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जी हाँ, चाय और पंचर की दुकान चलाने वाले पाँचवी पास यह शख़्स हैं फतेहपुर सीकरी (Fatehpur Sikri) के रहने वाले त्रिलोकी। उनका दावा है कि उन्होंने अपने साथियों के संग मिलकर जिस इंजन का निर्माण किया है, वह हवा की ताकत से चलता है।
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वह कहते हैं कि अगर इस तकनीक का इस्तेमाल कर गाड़ियों का इंजन बनाया जाए तो प्रदूषण (pollution) के बड़े हिस्से से हमें छुटकारा मिल जाएगा। त्रिलोकी का दावा है कि इस तकनीक से इंजन बनाकर मोटरसाइकिल से लेकर ट्रेन तक चलाई जा सकती है, बस इंजन को गाड़ी की शेप के हिसाब से मेडिफ़ाइ (modify) करना होगा।
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