PFI जैसे ख़तरनाक संगठन पर सिर्फ 5 साल ही बैन क्यों, आख़िर 300 से ज़्यादा सदस्यों को गिरफ़्तार करने के बाद भी क्यों है इतनी ढिलाई..?
नई दिल्ली। केंद्र सरकार (Central government) ने आख़िरकार पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (Popular Front Of India) (PFI) और उससे जुड़े संगठनों (organizations) पर पाँच साल की पाबंदी (ban) लगा दी है। जिन संगठनों पर पाबंदी लगाई गई है, उनमें कैंपस फ्रंट ऑफ़ इंडिया, रिहैब इंडिया फाउंडेशन (Rehab India Foundation), ऑल इंडिया इमाम काउंसिल (All India Imam Council), नेशनल कन्फेडेरेशन ऑफ़ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइंज़ेशन (National Confederation Of Human Rights Organisation), विमेंस फ्रंट (Womens Front), जूनियर फ्रंट (Junior Front), एंपावर इंडिया फाउंडेशन (Empower India Foundation) शामिल हैं। गृह मंत्रालय (Home Ministry) ने इन संगठनों के खूनी खेल और काले कारनामों की एक लिस्ट भी जारी की है। इससे पता चलता है कि ये सारे संगठन देश के कई राज्यों में दंगा करवाने (to riot), हत्याएँ करवाने (to commit murders), देश के खिलाफ साजिश रचने में लिप्त (Indulging in conspiracy against the country) रहे हैं। केंद्रीय जाँच एजेंसियों (central investigative agencies) ने देशभर में दो बार छापेमारी (raid) कर इस संगठन के 300 से ज़्यादा सदस्यों को गिरफ़्तार (arrest) किया है। पीएफआई (PFI) के तार खतरनाक आतंकी संगठन आईएसआई (terrorist organization ISI) से भी जुड़े हैं। इसका इरादा देश के लोगों में भय पैदा करना था। अब आप सोच रहे होंगे कि इतने खतरनाक संगठन को सिर्फ पाँच साल के लिए ही क्यों बैन किया गया..? इसपर पूरी तरह से प्रतिबंध क्यों नहीं लगा दिया गया..? क्या पाँच साल बाद फिर से ये संगठन संचालित होने लगेगा…? आइए समझते हैं…
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पहले जानिए PFI है क्या..?
पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया यानी पीएफआई का गठन 17 फरवरी 2007 को हुआ था। ये संगठन दक्षिण भारत (South India) के तीन मुस्लिम संगठनों का विलय करके बना था। इनमें केरल (Kerala) का नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु (Tamilnadu) का मनिथा नीति पसराई शामिल थे। पीएफआई का दावा है कि इस वक्त देश के 23 राज्यों यह संगठन सक्रिय है। देश में स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट यानी सिमी (SIMI) पर बैन लगने के बाद पीएफआई का विस्तार तेजी से हुआ है। कर्नाटक, केरल जैसे दक्षिण भारतीय राज्यों में इस संगठन की काफी पकड़ बताई जाती है। इसकी कई शाखाएँ भी हैं।
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किस तरह के लगे हैं आरोप..?
गृहमंत्रालय ने पीएफआई पर लगे आरोपों की एक लिस्ट जारी की है। इसमें बताया गया है कि पिछले कुछ सालों में देश के विभिन्न राज्यों में हुई हत्याओं में पीएफआई का हाथ रहा है। केरल में अभिमन्यु की 2018, ए संजीथ की नवंबर 2021, नंदू की 2021 में हुई हत्याओं (murders) में इसी संगठन का हाथ है। इसके अलावा तमिलनाडु में 2019 में रामलिंगम, 2016 में शशि कुमार, कर्नाटक में 2017 में शरथ, 2016 में आर. रुद्रेश, 2016 में ही प्रवीण पुजारी और 2022 में प्रवीण नेट्टारू की नृशंस हत्याएँ भी इसी संगठन ने करवाई थी। इन हत्याओं का एकमात्र मकसद देश में शांति भंग करना और लोगों के मन में खौफ पैदा करना था। चार जुलाई 2010 को केरल में प्रोफेसर टीजे जोसेफ के दाहिने हाथ की हथेली काट दी गई थी। पीएफआई मलयाली प्रोफेसर जोसेफ से नाराज था। संगठन का मानना था कि जोसेफ ने कॉलेज की परीक्षा में कथित तौर पर पैगंबर मुहम्मद के बारे में अपमानजनक टिप्पणी की थी। इसका बदला लेने के लिए पीएफआई के कार्यकर्ताओं ने जोसेफ के दाहिने हाथ की हथेली काट दी थी। इस घटना के आरोपियों को एनआईए ने गिरफ्तार किया था। गृह मंत्रालय के अनुसार, इस संगठन का ताल्लुक आतंकवादियों (terrorists) से है। संगठन के सदस्य सीरिया (Syria), इराक (Iraq) व अफ़गानिस्तान (Afghanistan) में जाकर आईएस के आतंकी समूहों में शामिल हुए, कई वहाँ मारे गए। कुछ को विभिन्न राज्यों की पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों ने गिरफ़्तार किया। इसके आतंकवादी संगठन जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश के साथ संबंध हैं। यह संगठन देश में हवाला व चंदे के माध्यम से पैसा एकत्रित कर कट्टरपंथ फैला रहा है। युवाओं को बरगला कर उन्हें आतंकवाद में धकेल रहा है।
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फिर केवल पाँच साल के लिए ही प्रतिबंध क्यों..?
इसे समझने के लिए हमने सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय से बात की। उन्होंने कहा, ‘अभी एनआईए की प्रारंभिक जाँच के आधार पर गृह मंत्रालय ने ये आदेश जारी किया है। अभी इसकी जाँच (investigation) जारी है और चार्जशीट फाइल होनी है। प्रारंभिक जाँच में कई अहम सबूत मिले। कई ने गवाही दी, जिसके आधार पर एक ये बड़ा एक्शन हुआ है। आगे चार्जशीट फाइल करते समय सरकार इन संगठनों पर हमेशा के लिए पाबंदी लगा सकती है। ये भी सुबूत (evidence) के आधार पर होगा।’ उपाध्याय कहते हैं, ‘किसी भी संगठन को खत्म करने के लिए शुरुआती पाँच साल काफी अहम होते हैं। इन पाँच साल में अगर सही से कानूनी शिकंजा कसता है तो इस संगठन के सभी गलत लोगों का तार कट जाएगा। जो सरकार (government) के लिए बड़ी उपलब्धि होगी।’
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