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तस्वीर एक बातें अनेक ! राजनैतिक विपक्षियों के घर जाना गुनाह है ?

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सियासत में वैचारिक मतभेद को मनभेद बनाने में मीडिया का भी बड़ा रोल रहा है। मसालेदार ख़बरें परोसने के चक्कर में दो विपरीत विचारों के नेताओं की निजी मुलाकातों को सनसनी के रूप में पेश कर सियासी मुद्दा बनाना कुछ मीडिया संस्थानों की आदत बनती जा रही है।

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एक दूसरे की विचारधारा के सख़्त विरोधी होते हुए भी एक दूसरे का सम्मान करना और निजी जीवन में अच्छे सम्बन्ध रखना भारतीय सियासत की परम्परा रही है।आज़ादी के बाद पण्डित नेहरू के नेतृत्व में बनी पहली सरकार में कई ऐसे मंत्री रहे जो कांग्रेस और नेहरू की नीतियों के धुर विरोधी रहे। तत्कालीन बिहार कांग्रेस के अध्‍यक्ष कौकब कादरी के अनुसार पार्टी का सदस्‍य न होते हुए भी पंडित नेहरू ने भीमराव अंबेडकर को देश का कानून मंत्री बनाया था। ठीक उसी प्रकार नेहरू ने अपने कट्टर विरोधी और साल 1944 में हिंदू महासभा के अध्यक्ष बने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को देश का प्रथम उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री बनाया। हालांकि कुछ साल बाद उन्होंने इस पद से भी इस्तीफा दे दिया था। राजीव गाँधी के दौर में अटल बिहारी वाजपेयी सदन से सड़क तक सरकार का विरोध करते रहे लेकिन राजीव गाँधी निजी जीवन में उनका बेहद सम्मान करते थे।

बीते दशक तक न्यूज़ चैनल के स्टूडियो में एक दूसरे पर गुर्राते प्रवक्ताओं को डिबेट के बाद किसी कॉफी हाउस में गप्पे लड़ाते देखा जाता था। सपा और बसपा की सियासी लड़ाई निजी झगड़े में बदली तब से सियासत की यह पुरानी परम्परा धीरे-धीरे खत्म होती गई। और आग में घी डालने का काम किया मसालेदार ख़बरें परोसने वाली मीडिया संस्थानों ने।

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हालांकि इस दौर में भी कुछ सियासतदां पुरानी परम्परा के साथ चल रहे हैं। उन्हीं में एक नाम जौनपुर के पूर्व सांसद और जनतादल यूनाइटेड के राष्ट्रीय महासचिव धनंजय सिंह का है।कांग्रेस से लेकर भाजपा और सपा-बसपा से लेकर शिवसेना और एनसीपी तक के कई नेताओं से उनके निजी और मधुर रिश्ते हैं।अमूमन उन्हें इन सम्बन्धों को निभाते भी देखा गया है। बानगी के तौर पर हाल ही में मुलायम सिंह यादव के देहांत के बाद धनंजय सिंह सैफ़ई पहुँचे और अखिलेश यादव से मिलकर शोक जताया। जबकि कुछ माह पूर्व ही हुए चुनाव में अखिलेश यादव ने धनंजय सिंह पर ख़ूब सियासी तीर चलाए थे।

मुलायम सिंह यादव के निधन तत्पश्चात अखिलेश से मिलकर दुःख साझा करते धनंजय सिंह ।

बीते दिनों पूर्व सांसद धनंजय सिंह एक निजी कार्यक्रम में कुछ भाजपा नेताओं से क्या मिले कि मीडिया को सनसनी फैलाने का मौका मिल गया। टीआरपी की लालच में कुछ पत्रकारों ने न केवल बेहूदे सवाल किए बल्कि जबरन उन्हें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विरोध में खड़ा करने का प्रयास किया। हालांकि धनंजय सिंह की सियासत को समझने वाले यह बात भलीभाँति जानते हैं कि वो व्यक्तिगत संबंधों को प्रथम वरीयता देते हैं , सितंबर 2011 में धंनजय सिंह बसपा सांसद रहते हुए ‘नोट के बदले वोट’ मामले के अभियुक्त अमर सिंह से जेल में मिलने चले गए थे जिसके बाद उन्हें बसपा सुप्रीमो मायावती ने पार्टी से निलंबित कर दिया था।

इस घटना से स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है कि प्रदेश की राजनीति किसी भी करवट घूमी हो लेकिन धनंजय सिंह अपने संबंधों को भूले नहीं और इसीलिए आज विपक्षी भी धनंजय सिंह के इस राजनीतिक शिष्टाचार के क़ायल हैं।

लेख : खुर्शीद अनवर खान ( वरिष्ठ पत्रकार )

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