पत्रकारों के साथ हो रहे उत्पीड़न का जिम्मेदार कौन ?
दिन – प्रतिदिन पत्रकारों के साथ कुछ न कुछ अनहोनी सुनने को मिल ही जाती है , कहीं किसी पत्रकार को गोली मार दी जाती है तो कहीं हत्या कर दिया जाता है । कहने को तो लोकतंत्र में चौथा स्तम्भ का दर्जा दिया गया है लेकिन इन पर आए दिन हो रही घटनाओं का जिम्मेदार कौन है ? भयमुक्त वातावरण तभी गंभीर होगा जब इस पर सरकार चिंतन करेगी ।पत्रकारों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने मौलिक अधिकार का प्रयोग करने के लिए हिंसा और धमकी का सामना करना पड़ रहा है । वे जिन खतरों का सामना कर रहे हैं उनमें हत्या, अपहरण , बंधक बनाना, ऑफ़लाइन और ऑनलाइन उत्पीड़न, डराना , जबरन गायब करना, मनमाना हिरासत और यातना शामिल हैं। आखिर कब तक पत्रकारों को इस प्रकार से डर के रहना होगा ।
मैं पत्रकार हूँ
राजनीती का शिकार हूँ , लाचार हूँ
किसी के पक्ष में न लिखूँ तो बेकार हूँ ,
किसी के पक्ष में लिखूँ तो चाटुकार हूँ ,
हर किसी को खुश करना मुझे आता नहीं ,
क्या करुँ समाज और सरकार के बीच कि तकरार हूँ ,
कहने को चौथा स्तम्भ हूँ पर खुद बे आधार हूँ ,
सच मुच मैं लाचार हूँ ,
फिर भी गर्व है मुझे क्यूँ कि मैं एक पत्रकार हूँ ।
आयुष ठाकुर , ( जनसंचार विभाग छात्र पु० वि०वि० जौनपुर )