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” हार का जश्न मनाईए , जीत का जश्न तो सभी मनाते हैं।” :- ठा.राना सिंह
” हार का जश्न मनाईए , जीत का जश्न तो सभी मनाते हैं।” :- ठा.राना सिंह

इस माह सभी बोर्ड के बच्चों का रिजल्ट आया जिनमें पास होने के प्रतिशत ज़्यादा थे लेकिन फेल भी कुछ प्रतिशत बच्चे हुए। इस भाग दौड़ और कम्पटीशन से भरी ज़िदंगी में लोग फेलियर्स को बड़ी दयनीय और अपेक्षित नज़र से देखते हैं , देखेंगे भी तो आखिर क्यों नहीं फेक परसेंटेज की दुनियाँ में कम्पटीशन जो इतना बढ़ गया है । घर के गार्जियन भी अपने फेल हुए बच्चों से या तो बद्तमीजी करेंगें या बात ही करना बंद कर देंगे यह दशा पूरे उत्तर भारत में ही फैल चुकी है ।
फेल हुआ बच्चा लेकिन कैसे सवाल यह है !

अपनी जिदंगी में कमज़ोर से कमज़ोर व्यक्ति भी कभी किसी भी काम में फेल नहीं होना चाहता यदि वह हो भी गया तो उसे एहसास हो जाता है कि मेरे किस कार्य के वजह से यह स्थिती उत्पन्न हुई , नासमझी या यूँ कहिए बिना मन के किए गए कार्य से सफलता नहीं मिलती । यदि गार्जियन अपने बच्चों को रोज़ समय ना दे पाते हों तो भी महीने/सप्ताह में एक बार अपने बच्चों के साथ दोस्त की तरह बैठकर उनकी रूचि व नासमझी को परखें , हो सकता है की आप उनके अंदर जज़्बात भरकर उनकी सारी कमियाँ और खूबियाँ एक ही बार में समझ उनके आगे ज़िंदगी में आने वाली परेशानियों से बचा सकें।
अनुपम खेर के पिता की वह पार्टी जो उन्हें कभी फेल नहीं होने दी ।

” मैंने अपने पिता के साथ गरीबी के दिन देखे। हम शिमला में रहते थे और पैसों की कमी के कारण वहाँ के एक रेस्टोरेंट (अल्फ़ा) में 6 माह के बाद ही सपरिवार जाते थे । वहाँ तीन चीजें ही ऑर्डर करते थे। वे मुश्किलों के दिन थे।
एक बार मेरे पिता अचानक से मुझसे बोले की तैयार हो जाओ बाहर खाने चलना है , मैं सोचा कि पूरा परिवार चलेगा लेकिन वह सिर्फ़ मुझे ही लेकर जा रहे थे । मैं तैयार हुआ और उनके साथ उस रेस्टोरेंट में गया। मेरे पिता ने मुझसे कहा कि आज जो तुम्हारा दिल करे उसे आर्डर करो । मैं आश्चर्य पर आश्चर्य होता जा रहा था ।
मैंने अपने पिता से इस पार्टी की वजह पूछी तो इस पर मेरे पिताजी ने पहले खाना खाने की बात कही। मैं हैरान और खुश दोनों होकर खाना खाया और खाते ही सवाल किया कि पिताजी अब इस पार्टी का कारण बताइए इस पर उन्होंने कहा कि वे एजुकेशन बोर्ड गए थे और वहाँ उन्होंने मेरे फेल होने का रिज़ल्ट देखा है। मैं इस पर शॉक्ड था कि आख़िर वे ऐसा क्यों कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वे मेरा फेल्योर (असफलता) सेलिब्रेट करने के लिए यहाँ आए हैं। उन्होंने कहा कि सफलताओं का जश्न हर कोई मनाता है लेकिन असफलताओं का कोई नहीं। ”

पिता के इस व्यवहार पर खेर को सबक मिल चुका था। जिसके पिता ने महज़ 16 साल की उम्र में ऐसे सबक सिखाए हों। उसे आगे कौन सी परिस्थितियाँ परेशान कर सकती हैं भला। आज अनुपम खेर की सफलता किसी से छुपी नहीं है।
बच्चों के अंदर की खूबियों को पहचान उसे निखारने का प्रयत्न करिए।
आज के भी समय में ज़्यादातर अभिभावक यही चाहते हैं कि उनका बच्चा डॉक्टर/ इंजीनियर / वैज्ञानिक / सिविल सर्विस में ही जाए , जब वहीं बच्चे स्कूली शिक्षा में असफल होते हैं तो उनके वही अभिभावक उन्हें इस बात पर जलील कर उनके अन्य हुनर को जिसमें की वे पारंगत् होते हैं उनका गला घोंट देते हैं जबकि कई ऐसे बच्चे हैं जो खेल कूद में अपने नाम का परचम लहरा सकते हैं । एक्टिंग / डाँसिंग / सिंगिंग / पेंटिंग व कई ऐसे विभिन्न क्षेत्रों में अपना नाम बना सकते हैं। इच्छा के अनुसार किए जा रहे कार्यों में सफलता पाना शत प्रतिशत तय होता है।
शिक्षा का मतलब साक्षर होने तक ही समझिए , प्रतिशत के चक्कर में बिना पडे़ अपने हुनर को तलाशिए , शिक्षित इतना रहिए कि जिस क्षेत्र में आप पारंगत् हों या अपना करियर बनाना चाहते हों उस क्षेत्र में आपको सफल होने में कोई अड़चन ना आ सके।
कई नामचीन हस्तियाँ हैं जिनके पास 12वीं तक का रिज़ल्ट नहीं है लेकिन आज उनके हुनर के कारण उन्हें पूरी दुनियाँ जानती है और उनके रिज़ल्ट ना होने पर भी कोई सवाल नहीं करता।
असफल हुए बच्चों के लिए ” सर थॉमस अल्वा एडिसन ” की कही इन बातों को ज़रूर पढ़ना और समझना चाहिए ।
” एक कागज़ का टुकडा़ कभी मेरे भविष्य का फैसला नहीं कर सकता ” ।।
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