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जानिए दुनिया के सबसे ऊंचे मंदिर “बृहदेश्वर मन्दिर” का अनोखा इतिहास
जानिए दुनिया के सबसे ऊंचे मंदिर “बृहदेश्वर मन्दिर” का अनोखा इतिहास
शुभेन्द्र धर द्विवेदी | 29-04-2020
भारत में कई सारे प्राचीन मंदिर है जिसका इतिहास काफी पुराना रहा है और जो अपनी वस्तु कला से लोगों को आश्चर्य चकित करता है। ऐसा ही एक मन्दिर है तमिनाडु के तंजौर जिले में, जो विश्व के प्रमुख ग्रेनाइट मंदिरों मे से एक है।तमिल भाषा में इस मंदिर को “बृहदेश्वर” के नाम से संबोधीत किया जाता है। यह एक शिव मंदिर है जिसे शैव धर्म के अनुयायियों द्वारा विशेष महत्व दिया जाता है। ग्यारहवीं सदी के आरम्भ में बनाया गया यह “बृहदेश्वर मंदिर” कलात्मक उत्कृष्टता, वास्तु-कला, शिल्प-कला, चित्रकला, कांस्य मूर्तियाँ, प्रतिमाएँ और पूजा -पद्धति अनूठा वास्तुकला, पाषाण व ताम्र में शिल्पांकन, चित्रांकन, नृत्य, संगीत,आभूषण एवं उत्कृष्ट कला का बेजोड़ उदाहरण है। 13 मंजिले का यह मंदिर 216 फीट ऊंचा है जो इसे दुनिया का सबसे ऊंचा मन्दिर बनता है। # दुनिया का सबसे ऊंचा मंदिर “बृहदेश्वर मन्दिर

मंदिर का इतिहास
जितना भव्य यह मंदिर है उतना ही भव्य इस मंदिर का इतिहास भी है। इस प्राचीन मंदिर का निर्माण चोल शासक राजा “राजा चोला प्रथम” ने 1010 ई. में किया गया है। यह मंदिर हिन्दू धर्म की गरिमा और प्राचीन इतिहास का श्रेष्ठ उदाहरण है। ऐसा कहा जाता है कि ये मन्दिर महज 5 वर्षों की अवधि में बनाया गया था।राजाराजा प्रथम भगवान शिव के परम भक्त थे जिके कारण उन्होंने कई शिव मंदिरों का निर्माण कराया था।जिनमें से एक बृहदेश्वर मंदिर भी है। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर विशाल आयताकार प्रांगण में स्थित है। # दुनिया का सबसे ऊंचा मंदिर “बृहदेश्वर मन्दिर
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मंदिर के पूर्व दिशा में स्थित दो व्यापक गोपुरम् से मंदिर में प्रवेश किया जा सकता है। मंदिर के विशाल प्रांगण में मंदिर का गर्भ-गृह, नंदी मंडप, सभामंडप तथा कई छोटे मंदिर हैं। मुख्य मंदिर की ओर अभिमुख स्तंभों के साथ सभामंडप 16वीं सदी में बनाया गया था । सामने ही ऊँचा दीप स्तंभ है। नंदी मंडप में 6 मीटर लंबे ग्रेनाइट के एक विशाल नंदी विराजमान हैं।मंदिर का गर्भगृह वर्गाकार है, जिसका आधार 64 वर्ग मीटर है। यहां स्थापित हैँ मंदिर के प्रमुख देवता राजराजेश्वर। ग्रेनाइट से निर्मित विशालकाय लिंग लगभग 3.75 मीटर ऊँचा है। # दुनिया का सबसे ऊंचा मंदिर “बृहदेश्वर मन्दिर
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इस मंदिर को बनाने में 1लाख 30 हजार टन ग्रेनाइट का इस्तेमाल किया गया है।जबकि उस इलाके में या उसके आस पास के इलाके में कोई पहाड़ या चट्टान नहीं है जहां से इतनी मात्रा में ग्रेनाइट लाई जा सकते। तब के समय में ना तो इतनी बड़ी मसिने थी और ना ही कोई उपकरण थे ऐसे में यह सवाल उठता है कि इतने विशाल पत्थरों को हजारों साल पहले यहां तक कैसे लाया गया था।बताया जाता है कि लगभग 3 हजार हाथियों कि मदद से ये पत्थर मिलों दूर से यहां लाए गए थे। इन पत्थरों को ना तो सीमेंट से ना ही किसी ग्लू से जोड़ा गया है, बल्कि इसे पजल सिस्टम से जोड़ा गया है।
पजल सिस्टम यानी एक पत्थर पर दूसरे पत्थर को जमाना।इंदौर का इस तकनीक से निर्माण भारत कि पुरानी और विकसित सिल्प कला को दर्शाता है। वर्ष 2010 में इसके निर्माण के एक हजार वर्ष पूरे हुए थे। यहां स्थित भगवान शिव की सवारी कहे जानेवाले नंदी की प्रतिमा भारतवर्ष में दूसरी सर्वाधिक विशाल प्रतिमा है जिसे एक ही पत्थर को तराश कर बनाया गया है।नंदी की यह प्रतिमा 16 फुट लंबी और 13 फुट ऊंची है
80 टन का स्वर्णकलश

मंदिर के शिखर पर एक स्वर्णकलश (कुंभम्) स्थिति है जिसे केवल एक ही पत्थर को तराश कर बनाया गया है। जिसका वजन 80 टन है।बताया जाता है कि इस पत्थर को वहां तक पहुंचने के लिए छ: किलोमीटर लंबा ढलान बनाई गई थी, जिसपर लुढ़का कर उस विशाल पत्थर को मंदिर से शिखर तक पहुंचाया गया था। 216 फुट ऊंचा होने के नाते यह मंदिर तंजौर जिले के हर कोने से दिखाई देता है। निर्माण के बाद चोल शासकों ने इस मंदिर का नाम “राजराजेश्वर” रखा था मगर तंजौर पर हमला करने वाले मराठा शासकों ने इस मंदिर को “बृहदेश्वर” नाम दे दिया था।
रहस्यमई और आश्चर्यचकित कर देने वाली खासियत
दुनिया में बहुत सी ऐसी इमारतें है जो इतिहास में बनी है मगर अब उनकी स्थिति खराब हो रही है। पीसा की मीनार, इटली का लिनिंग टॉवर, लंदन का बिग बेन आदि सहित कई ऊंची संरचनाएं टेढ़ी हो रही हैं, मगर यह में मंदिर ज्यों त्यों बना हुए है। इस मंदिर की बिना नींव खोदे बनाया गया है बिल्कुल समतल ज़मीन पर फिर भी हजारों साल पुराना यह मंदिर हल्का सा भी नहीं हिला है। # दुनिया का सबसे ऊंचा मंदिर “बृहदेश्वर मन्दिर
इस मंदिर कि सबसे खास और चौंकाने वाली विशेषता यह है कि दोपहर को मंदिर के हर हिस्से की परछाई जमीन पर दिखती है। मगर मंदिर के गुंबद कि परछाई कभी जमीन पर नहीं आती। इसका कारण आज भी लोगों के लिए रहस्य है।
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