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तो इस वैक्सीन से होगा कोरोना का इलाज
तो इस वैक्सीन से होगा कोरोना का इलाज
नई दिल्ली: जहां एक तरफ विश्व के कई देश कोरोना महामारी का इलाज ढूंढने में लगे हुए है, वहीं ताजा रिसर्च में यह पता चला है कि बीसीजी का टीका इस बीमारी की काट बन सकता है। कोरोनावायरस को रोकने की कोशिशों में न्यूयॉर्क इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के डिपार्टमेंट ऑफ बायोमेडिकल साइंसेस के वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च की है जिसके मुताबिक, अमेरिका और इटली जैसे जिन देशों में बीसीजी वैक्सीनेशन की पॉलिसी नहीं है, वहां कोरोना के मामले ज्यादा सामने आ रहे हैं और मौतें भी ज्यादा हो रही हैं। #कोरोना -वैक्सीन

वहीं, अगर भारत की बात करें तो यहां पिछले 72 सालों से बीसीजी के टीके लगाए जाते हैं। यानी अगर ये रिसर्च सही साबित होती है तो भारत में कोरोना खतरा अन्य देशों की तुलना में थोड़ा कम हो सकता है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हम लापरवाही बरतना शुरू कर दें। #कोरोना -वैक्सीन
इस आधार पर हुई रिसर्च
वैज्ञानिकों ने रिसर्च में पाया कि बीसीजी वैक्सीनेशन वायरल इन्फेक्शंस और सेप्सिस जैसी बीमारियों कि रोकथाम में मददगार होता है। इससे ये उम्मीदें जागी है कि कोरोना से जुड़े मामलों में बीसीजी वैक्सीनेशन अहम भूमिका निभा सकता है। अलग-अलग देशों में हुए शोध में मिले आंकड़ों के अनुसार ये बातें सामने आई है।
1. जिन देशाें में बीसीजी वैक्सीनेशन हुआ है, वहां कोरोना की वजह से मौत के मामले में कम हैं। जहां बीसीजी की शुरुआत जल्दी हुई, वहां कोरोना से मौतों के मामले और भी कम है। जैसे ब्राजील ने 1920 और जापान ने 1947 में बीसीजी का वैक्सीनेशन शुरू कर लिया था। यहां कोरोना फैलने का खतरा अन्य देशों की अपेक्षा 10 गुना कम है।#कोरोना -वैक्सीन
वहीं, ईरान में 1984 बीसीजी का टीका लगना शुरू हुआ। इससे ये माना जा रहा है कि ईरान में 36 साल तक की उम्र के लोगों को टीका लगा हुआ है, लेकिन बुजुर्गों को यह टीका नहीं लगा है। इस वजह से उनमें कोरोना का खतरा ज्यादा है।
वहीं अगर भारत की बात करें तो सन 1948 से ही इस टीके का इस्तेमाल होता आया है। भारत में शिशु के जन्म के तुरंत बाद ही बीसीजी टीका लगा दिया जाता है, यह टीवी से बचाव के लिए होता है, साथ ही यह अन्य संक्रमित बीमारियों से भी बचाव करता है
2. जिन देशों में बीसीजी वैक्सीनेशन नहीं है, वहां संक्रमण के मामले और मौतें भी ज्यादा हैं। ऐसे देशों में अमेरिका, इटली, लेबनान, बेल्जियम और नीदरलैंड शामिल है, जहां कोरोना के फैलने का खतरा 4 गुना ज्यादा है।
क्या कहते हैं भारतीय वैज्ञानिक
हालांकि न्यूयॉर्क इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के डिपार्टमेंट ऑफ बायोमेडिकल साइंसेस स्टडी में कहीं भी भारत का नाम शामिल नहीं है। भारत में ज्यादातर लोगों को बचपन में ही टीबी से बचाव के लिए बीसीजी का टीका लगाया जाता है। यह न सिर्फ टीबी से बचाता है, बल्कि सांस की बीमारी में भी फायदेमंद होता है। कोरोनावायरस भी सांस की नली से फेफड़े तक पहुंचता है।
क्या है बीसीजी वैक्सीन?
बीसीजी वैक्सीन का पूरा नाम है बेसिलस कॉमेटी गुइरेन। यह टीबी और सांस से जुड़ी बीमारियों को राेकने में मददगार है।इस टीके को जन्म के तुरंत बाद लगाया जाता है। दुनिया में सबसे पहले इसका 1920 में इस्तेमाल हुआ। भारत में बीसीजी का टीका पहली बार 1948 में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू हुआ था। अगले ही साल यानी 1949 में इसे देशभर के स्कूलों में शुरू किया गया। 1951 से यह बड़े पैमाने पर होने लगा। 1962 में जब राष्ट्रीय टीबी प्राेग्राम शुरू हुआ तो देशभर में बच्चों को जन्म के तुरंत बाद यह टीका लगाया जाने लगा। इस हिसाब से ये माना जा सकता है कि भारत में बड़ी आबादी को बीसीजी का टीका लगा हुआ है। अभी देश में जन्म लेने वाले 97% बच्चों को यह टीका लगाया जाता है।
फिलहाल अभी इस रिसर्च पर काम जारी है, अगर यह रिसर्च सफल भी होती है तो फिर टेस्टिंग होगी इसके बाद ही आगे का काम होपाना संभव होगा। इसमें कितना वक्त लगता कुछ कहा नहीं जा सकता। लेकिन जबतक इस बीमारी का इलाज नहीं मिल जाता और इसका खतरा काम नहीं होता तबतक हमें सतर्क रहने की आवश्यकता है, क्योंकि सतर्कता ही सुरक्षा है।